नागरिक संशोधन विधेयक के तहत 1955 के सिटिजनशिप ऐक्ट में बदलाव का प्रस्ताव है।

संसद के शीतकालीन सत्र में एसपीजी सुरक्षा बिल के बाद अब नागरिकता संशोधन विधेयक (एनआरसी) को लेकर हंगामा देखने को मिल सकता है। आज कैबिनेट बैठक में विधेयक को मंजूरी मिल गई है। इसे अगले सप्ताह सदन में पेश किए जाने की संभावना है। इस बिल में पड़ोसी मुल्कों से शरण के लिए आने वाले हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। बिल का विरोध कर रहे विपक्षी दलों ने इसे संविधान की भावना के विपरीत बताते हुए कहा है कि नागरिकों के बीच उनकी आस्था के आधार पर भेद नहीं किया जाना चाहिए।


एक तरफ विपक्षी दल इस पर कड़ा विरोध कर रहे हैं तो दूसरी तरफ सरकार ने भी इस बिल पर आगे बढ़ने की मंशा जाहिर कर दी है। मंगलवार को हुई भाजपा संसदीय दल की बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट किया कि यह बिल सरकार की शीर्ष प्राथमिकता में है। यही नहीं उन्होंने इस विधेयक की तुलना आर्टिकल 370 को हटाए जाने से भी की। राजनाथ सिंह ने सभी सांसदों से कहा कि गृहमंत्री अमित शाह जब इस विधेयक को पेश करें तो सभी लोग सदन में मौजूद रहें। इस बिल में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है।


सरकार इस बिल को अल्पसंख्यक विरोधी बताए जाने को बात को खारिज कर रही है। राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि पड़ोसी देशों से आने वाले 6 धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को शरण देना मोदी सरकार की सर्वधर्म समभाव की नीति का परिचायक है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, समाजवादी पार्टी और लेफ्ट जैसे दल इस बिल का तीखा विरोध कर रहे हैं और बीजेडी ने भी कुछ ऐतराज जताए हैं।


इसके बाद भी भाजपा के पास लोकसभा में इस बिल को पारित कराने के लिए पर्याप्त संख्या है। यही नहीं राज्यसभा में भी अकाली दल और जेडीयू जैसे सहयोगियों का उसे साथ मिल सकता है।


नागरिक संशोधन विधेयक के तहत 1955 के सिटिजनशिप ऐक्ट में बदलाव का प्रस्ताव है। इसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आकर भारत में बसे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रस्ताव है। इन समुदायों के उन लोगों को नागरिकता दी जाएगी, जो बीते एक साल से लेकर 6 साल तक में भारत आकर बसे हैं। फिलहाल भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए यह अवधि 11 साल की है।


इस बीच असम और त्रिपुरा समेत पूर्वोत्तर राज्यों में इस बिल के विरोध को रोकने के लिए भी सरकार कुछ उपायों पर विचार कर रही है। पूर्वोत्तर राज्यों में यह कह कर इस बिल का विरोध किया जा रहा है कि इससे मूल निवासियों की संख्या में कमी आएगी और आबादी का संतुलन बिगड़ेगा। इस पर गृह मंत्री अमित शाह ने अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नगालैंड में इनर लाइन परमिट बरकरार रखने और असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में भी पुराने नियमों के तहत मूल निवासियों के संरक्षण का भरोसा दिया है। 


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